पूर्णम आश्रम गुजरात के पंचमहाल जिले के हालोल तालुका में पारखंडा – खरेटी गाँव में स्थित भारतीय ज्ञान विज्ञान प्रौद्योगिकी के लिए समर्पित एक प्रयोगभूमि है, जहाँ इन विषयों पर अनुसंधान व अभिलेखीकरण किया जाना है। स्नेहा और आशुतोष जानी एवं कुछ मित्रों के साथ किया जानेवाला यह प्रयास एक लंबी यात्रा की परिणति है, जो निम्नानुसार है।
स्नेहा और आशुतोष की यात्रा अहमदाबाद के आसपास के गाँवों में बच्चों को शिक्षा देने के प्रयास से एवं महिलाओं एवं युवाओं को रोजगार देने के प्रयासों से प्रारंभ हुई और इसी माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जीवन को करीबी से देखा। यह अनुभूति उन्हें इस समझ तक ले गई, कि देश में होने वाले अधिकांश ग्राम्य विकास के कार्यक्रम या ग्राम्य सशक्तिकरण के कार्यक्रम वास्तव में तो ग्राम्य शहरीकरण के ही कार्यक्रम हैं, क्योंकि गाँव की परिभाषा ही हम पीछे छोड़ चूके हैं।
हमारे अधिकांश शिक्षित दीक्षित वर्ग ने गाँव से जुडी हुई या तो देशज पद्धतियों से जुडी हुई बहुत कुछ पद्धतियों को पिछड़ा हुआ मान लिया और जो पश्चिम की राह पर आर्थिक तथा परिवहन तथा निर्माण क्षेत्रों से जुड़ी पद्धतियां हैं, उन्हें या तो आदर्श मान लिया, या तो विवशता मान लिया।
संक्षेप में कहें, तो हमने अपनी जड़ों पर खड़े होकर कुछ करने की क्षमता छोड़ दी और हम किसी दूसरे आधारतल पर खड़े होकर कुछ करने लगे और यदि हम किसी पराए आधारतल पर खड़े होंगे, तो निश्चय ही द्वंद्व से कभी मुक्त ना हो पाएंगे और ना ही सहज हो पाएंगे।
इन्हीं उलझनों का समाधान पाने हेतु स्नेहा और आशुतोष ने भारत भ्रमण करने का निश्चय किया और अपने देश को देखने जानने का निश्चय किया, जो यात्रा उन्हें भारत के कई दूरसुदूर के गांँवों में ले गई और कई संस्थाओं के पास भी। इस यात्रा के सबसे महत्त्वपूर्ण पड़ाव के रूप में उनकी मुलाकात आदिलाबाद में स्थित कला आश्रम में गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी से हुई। खोई हुई परिभाषाओं के कई सूत्र उन्हें गुरुजी से मिले। भारत की परंपराएंँ, व्यवस्थाएंँ इत्यादि कैसे गूंथी हुई थी और किस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान और विकास की भ्रामक अवधारणाओं के चलते वे विक्षुब्ध हुई हैं। यहाँ प्रश्न पूर्व बनाम पश्चिम का नहीं है, ना ही आधुनिक बनाम पुरातन का है, प्रश्न यहांँ परिभाषा का है।
आर्थिक विकास की बात हो, तो उसका भी भारतीय धरातल क्या हो, राजतंत्र का भारतीय धरातल क्या हो, अर्थव्यवस्था, न्याय व्यवस्था, उत्पादन के कार्य इत्यादि सभीका भारतीय धरातल क्या हो, विनिमय, परिवहन सभीका भारतीय धरातल क्या हो, यह चिंतनीय है।
आज पलने बढ़ने वाला बच्चा यदि यह मानता है, कि हम तो निकम्मे हैं, हमने तो सबकुछ पश्चिम ही से सीखा है, तो उसमें उसका दोष कम है, क्योंकि उसका तो जन्म ही अनुकरण करने वालों के बीच में हुआ है, ऐसे लोगों के बीच में हुआ है, जिनका अपना कुछ नहीं। कुछ अमरीका से आया है, तो कुछ जर्मनी से तो कुछ फ्रांस से तो कुछ रशिया से, अपना कुछ नहीं। स्वयं जो कुछ भी कर रहे हैं, वो उनका अंधानुकरण मात्र है। अपना कहने के लिए यदि थोड़ा बहुत कुछ बचा है, तो वह धार्मिक कर्मकांड, जिसे भी बिना समझ के परंपरा नहीं, बल्कि कोरी आदत के रूप में निभाया जाता है, या तो यूं कहें कि ढोया जाता है और ढोया तो बोझ ही जाता है और वह भी बड़ी तेज रफ्तार से छूट रहा है।
स्नेहा और आशुतोष ने गुरुजी से मिलने के बाद स्वानुभव हेतु गांँव में रहने का मन बना लिया और गुजरात के छोटा उदेपुर जिले के एक वनों से घिरे हुए गांँव में दो तीन वर्ष रहे और वहां के जीवन को समझने का प्रयास किया, वहां के समाज के सामर्थ्य को समझने का प्रयत्न किया, उनकी कारीगरी को समझने का प्रयत्न किया और कुछ कामों को सीखा भी। गुरुजी को काम करते हुए देखकर ही वे मिट्टी से गणेश जी की मूर्ति बनाना सीखे और गणेश वंदना का प्रयास शुरू हुआ। गुरुजी के पास रहकर ही उन्होंने लकड़ी से मूर्ति बनाना भी सीखा एवं गुजरात में विभिन्न कारीगरों के साथ रहकर सूत की कंताई बुनाई भी सीखे। इसके अतिरिक्त वे लकड़ी के खिलौने भी बनाते हैं और मिट्टी से भवन भी।
गुरुजी ने जिस प्रकार भारत को भारतीयता का पुनर्बोध करवाया, उसी प्रक्रिया से प्रेरित होकर श्री आशीष कुमार गुप्ता जी ने जबलपुर के पास इंद्राना गांव में जीविका आश्रम एवं शोध संस्थान की स्थापना की है, स्व. सुनील देशपांडे जी ने महाराष्ट्र के अमरावती जिले में मेलघाट क्षेत्र में कोठा गांव में ग्राम ज्ञान पीठ की स्थापना की है और आचार्य प्रशांत कुमार जी ने बेंगलुरु में भारतीयता अनुसंधान केंद्र ट्रस्ट की स्थापना की है और इसी प्रकार कई अन्य साथी देश के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवस्थाओं एवं परंपराओं के बीजों की रक्षा तथा संवर्धन का कार्य कर रहे हैं।
इन प्रयासों / प्रयोगों से जन्मी पूर्णम आश्रम की संकल्पना।
पूर्णम आश्रम के लिए आवश्यक पौने तीन एकड़ भूमि सन २०२० में ली गई और सन २०२१ में वहां मिट्टी से एक छोटे से भवन का निर्माण किया गया, जहां रहकर इन प्रयोगों की शुरुआत की जा सके और १२ जुलाई सन २०२१ / आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत २०७७ के शुभ दिन पर कलश पूजन करके गृह प्रवेश किया गया।
पूर्णम आश्रम में विभिन्न कारीगरी विधाओं पर काम किया जाना है। उन्हें सीखने सिखाने के प्रयास किए जाने हैं, उनके विषय में लेखन किया जाना है, उनका प्रचार किया जाना है, भारतीयता से अनुरूप प्रत्येक तंत्र, प्रत्येक व्यवस्था के विषय में शोध व लेखन किया जाना है, गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा की बातों के विषय में लेखन किया जाना है और भारतीयता को आत्मसात करने के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करने के प्रयास हेतु गोष्ठियों का आयोजन किया जाना है।